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आरीसा भवन में केवलज्ञान अर्थात् चक्रवर्ती भरत आत्मा जाने पर यह देह और यह समृद्धि सव पराई है । भरतेश्वर आत्म-रमण की विचारधारा में गहरे-गहरे डूबते रहे और उन्हें आरीसाभुवन में ही केवलज्ञान प्राप्त हो गया।
इन्द्र का आसन कम्पित हुआ। उसने उपयोग किया तो ज्ञात हुआ कि भरतेश्वर ने केवलज्ञान प्राप्त किया है। इन्द्र ने मुनिवेष प्रदान किया । भरतेश्वर ने पंच मुष्टि लोच किया और मुनि-वेष पहनकर भरतकेवली दस हजार मुनियों के साथ धरातल पर विचरने लगे। . अयोध्या के राज्य-सिंहासन पर आदित्ययशा का अभिषेक हुआ। दीक्षा के पश्चात् एक लाख पूर्व तक भरतेश्वर जगत् में विचरते रहे और अनेक प्राणियों का उद्धार करके अपने नाम से भरतक्षेत्र को प्रसिद्ध करने वाले वे अनशन करके निर्वाण-पद को प्राप्त हुए।
(लघुत्रिषष्टिशलाका चरित्र से)
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