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सचित्र जैन कथासागर भाग - २ पूछने की हुई कि तुम किसके पुत्र हो? तुमने दीक्षा कब अङ्गीकार की? इतने में मुनियुगल चला गया और देवकी खड़ी खड़ी उनका मार्ग देखती रही। ____ अभी अधिक समय व्यतीत नहीं हुआ था कि इतने में दूसरा मुनि-युगल ‘धर्मलाभ' कह कर खड़ा रहा। देवकी को प्रतीत हुआ की कुछ समय पूर्व आये हुए मुनि ही पुनः आये हैं । उसने उन्हें लड्डुओं की भिक्षा प्रदान की परन्तु उसके मन में यह विचार घूमता रहा कि या तो मुनि मार्ग भूल गए हैं या गोचरी के अभाव में दूसरी बार आये हैं। इतनी बड़ी द्वारिका में साधुओं को दूसरी बार आना पड़े यह असम्भव है।'
देवकी अपने मन में प्रथम बार उत्पन्न शंका के सम्बन्ध में प्रश्न पूछना चाहती थी परन्तु वह उन्हें यह प्रश्न पूछकर लज्जित हो इस कारण उसने प्रश्न पूछने का विचार त्याग दिया। मुनि भिक्षा ग्रहण कर चले गये, इतने में तीसरी बार फिर दो मुनि आये। देवकी धैर्य खो बैठी। उसने उन्हें लड्डुओं की भिक्षा दी परन्तु भिक्षा प्रदान करने के पश्चात उन्हें पूछा, 'भगवन! आप त्यागी मुनियों को भी तीन बार एक घर पर भिक्षार्थ आना पड़े वैसी स्थिति द्वारिका में देख कर मुझे अत्यन्त दुःख होता है । क्या द्वारिका के निवासियों में विवेक का अभाव हो गया है? त्यागी महात्माओं का सम्मान उनके आंगन, उठ गया है? महाराज! श्री कृष्ण की द्वारिका में क्या ऐसा होता है? अथवा आप कहीं मार्ग तो नहीं भूल गये?' मुनि बोले, 'हम न तो मार्ग भूले हैं और न द्वारिका में त्यागियों के प्रति सम्मान
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सतत तीसरी बार दो मुनियों के भिक्षा-आगमन से देवकी की धीरज खट गई
और वह लहु वहोराने के बाद बोली...
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