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हिंसा का रुख अर्थात् आत्मकथा की पूर्णाहुति
१२९ क्षमाकल्याणजी ने गद्य में इस चरित्र का सुन्दर आलेखन किया है। जैन साहित्य में बोधप्रद एवं रसप्रद गिने जाने वाले विशिष्ट ग्रन्थों में इस ग्रन्थ का भी विशिष्ट स्थान
(यशोधर चरित्र से) परम पूज्य प्रशान्तरसनिमग्न आचार्यदेव श्रीमत् कैलाससागरसूरीधरजी महाराज साहब द्वारा संग्रहित श्री जैन कथासागर - भाग २
शिवमस्तु सर्व जगतः ....
समाप्त.
अनेक व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्हें अपने घर के मनुष्य विषतुल्य प्रतीत होते हैं और पराये मधुर प्रतीत होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की विपरीत दशा होती है।
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