________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२४
सचित्र जैन कथासागर भाग - २ कल्याण नहीं करती। राजन्! मुनि की वाणी ने तुझे प्रतिबोध दिया है। इतना ही नहीं उनकी वाणी ने मुझे भी प्रतिवोध दिया है।'
लोगों की ओर उन्मुख होकर देवी ने कहा, 'भाइयो! आप मेरी उपासना करते हो, मेरे भक्त हो तो मैं आपको कहती हूँ कि जीव-हिंसा करने से रुको । राजन्! तू सुदत्त मुनि के उपदेश का अनुसरण कर । उनका अनुसरण करके राज्य का पालन कर । मैं धर्म की रक्षक बनी रहूँगी और तुझे धर्म-कार्यों में सहायता करूँगी। तेरे राज्य में चाहने पर ही मेघ वृष्टि करेंगे। तेरा कोई शत्रु नहीं रहेगा। जैसा तू क्रूर राजा गिना जाता था वैसा तू धर्म-परायण गिना जायेगा।' . देवी मुनिवर को प्रणाम करके अन्तर्धान हो गई।
मारिदत्त ने जीव-हिंसा का परित्याग किया और श्रावक धर्म की याचना की। मुनिराज उसे सुदत्त मुनि के पास ले गये । वहाँ जाकर उसने तथा जयावली ने श्रावक धर्म स्वीकार किया। __ मारिदत्त नृप धार्मिक बना | नगर के बाहर का उद्यान बलिदान की भूमि के बजाय सौम्य एवं सात्विक देवी का गृह बना । राजपुर नगर अहिंसक नगर के रूप में विख्यात
हुआ।
__ सुदत्त मुनि थोड़े दिन राजपुर नगर में रहे । तत्पश्चात् अनेक जीवों को प्रतिबोध देते हुए आत्मकल्याण करके मोक्ष में गये । महा पापी गुणधर राजर्षि ने भी अन्त में मासिक संलेखना करके केवलज्ञानी बन कर समस्त कर्मों का क्षय करके मोक्ष-लक्ष्मी
Felm
माMUN
राजन! हिंसा कदापि कल्याणकारिणी नहीं होती. राजन! मुनि की वाणीने जैसे तुझे प्रतिबोध दिया वैसे ही
मैं भी प्रतिबोधित हुई हूँ!
For Private And Personal Use Only