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हिंसा का रुख अर्थात् आत्मकथा की पूर्णाहुति
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गुणधर मुस्कराता हुआ कुतुहल देखता रहा । कुत्ते तुरन्त दौड़े परन्तु उनमें से एक भी मुनि के पास नहीं जा सका। सवके आश्चर्य के मध्य वे सव कुत्ते मुनि से ढ़ाई हाथ दूर रह कर एक एक करके वे उनकी परिक्रमा करने लगे और मानो पालतू कुत्ता अपने स्वामी को रिझाने के लिए इधर-उधर पाँव हिलाता है, सिर ऊपर-नीचे करता है, उसी प्रकार वे सव प्रसन्नता व्यक्त करते हुए हाथ-पाँव ऊँचे करके मुनि को प्रणाम करके समझदार मनुष्य की तरह एक के पश्चात् एक वे उनके समक्ष बैठ गये ।
मारिदत्त ! यह दृश्य देख कर गुणधर की आँख जो लाल हो गई थी उसकी लाली में तुरन्त परिवर्तन हो गया । वह सोचने लगा, 'ये कुत्ते ऐसे भयंकर हैं कि दूरी पर उड़ने वाले वेगवान पक्षी को भी गिरा देने वाले तथा निशान साधने वाले हैं। इन समस्त कुत्तों को क्या हो गया कि सपेरे की वीन पर साँप नाचता हैं उसी प्रकार सव एक साथ हाथ-पाँव हिला कर विनीत शिष्यों की तरह बैठ गये? अवश्य ही यह साधु कोई लब्धि युक्त होना चाहिये। इसमें कोई दिव्य प्रभाव होना चाहिये कि जो अपनी छाया में आये उसे उपदेश दिये विना ही उसका परिवर्तन करा सके। कहना चाहिये कि ये शिकारी कुत्ते भाग्यशाली हैं कि जो मुनि की छाया से पवित्र होकर विनीत हो गये । मैं प्रतापी सुरेन्द्रदत्त राजा का पुत्र गिना जाता हूँ। पिताश्री की उत्तम सौरभ को मैंने अपने पापी जीवन से दुर्गन्धयुक्त वना दी है। जो पिता महान् गुणवान एवं दयालु थे, उनका पुत्र मैं इन कल्याणकारी विश्ववंद्य त्यागी मुनिवर का वध करने के लिए तत्पर हो गया। मैं सचमुच कुत्तं मे भी निम्न स्तर का हूँ. अधम हूँ। कुत्तों को प्रेरित करने
सभी शिकारी कुत्त मुनि के पास पहूचत हा पालतु कुत्ता की तरह प्रसन्नता व्यक्त करते हुए मुनि का प्रणाम कर एक के बाद एक कर के वे बैठ गए!
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