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सचित्र जैन कथासागर भाग
राजन्! मुर्गे का वध करने वाले और उसकी प्रेरणा देने वाले हम दोनों की मृत्यु
हो गई।
यह मेरा प्रथम भव है । कृत्रिम हिंसा भी कैसी अनर्थकारी है यह वृत्तान्त उसी का सूचक है।
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अहो नु खलु नास्त्येव जीवघातेन शान्तिकम् । मूढवैद्यप्रयुक्तेन कुपथ्येनेव पाहवम् ।।१ ।। अशान्तिं प्राणिनां कृत्वा कः स्वशान्तिकमिच्छति ।
इभ्यानां लवणं दत्त्वा किं कर्पूरं किलाप्यते ? । । २ । ।
मूर्ख वैद्य द्वारा बताये गये कुपथ्य से आरोग्य नहीं होता उसी प्रकार जीव-हिंसा से कदापि शान्ति नहीं होती । जीवों को अशान्ति करके कौन मूर्ख अपनी शान्तिक इच्छा करेगा? वणिक को नमक देकर कर्पूर की इच्छा क्या कभी सफल होती है ?