________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(५८) स्खल न थाय. ए न्यायथी अशुद्धिओ रही गइ हशे अगर जे लेखो नहीं वंचाया त्यां........टपकां करवामां आव्यां छे ते संबंधी सुधारो भविष्यमा स्पष्ट लेखो वंचातां करवामां आवशे..
छपायला लेखो विनाना बाकीना लेखो. आ लेख संग्रहनां प्रथम विभागमा १५२३ पन्नरसे तेवीस लेखो आप्याछे अने हनी अमारी पासे पन्नरसो लगभग लेखो छपाववाना बाकी रह्या छे. इतिहासनावेत्ताओ तो लेखोनी सारी रीते उपयोगिता जाणी शके छे. जैनोनी ज्ञातियो अने साधुओ श्रेष्ठिवर्ग संबंधी अने आचार्यो संबंधी ज्ञान थवाथी तेमनामां आत्मोन्नति करवा माटे उत्साहशक्ति प्रगटवानी ए निर्विवाद छे. जैन गृहस्थोनी साहाय मळतां बाकीना लेखो छपाक्वा माटे प्रवृत्ति थशे. आणंदनी कल्याणजीनी पेढी वगेरे पेढीओ जो जैनमंदिरोना शिला लेखो, प्रतिमाना लेखो छपाववाचें कार्य उपाडी ले अगर तेवां पुस्तकोने खरीदी दरेक गामना देरासरना आगेवानोपर मोकले तो तेथी घणो फायदो थइ शके तेम छे. गृहस्थोनी साहाय्य विना लीधेला दोढ हजार लेखो हनी छपाया विना पडी रह्या छे माटे जे गृहस्थोनो भाव थाय तेओए साहाय्य माटे लखवू. __ धातुप्रतिमाना लेखो लेवाना हनी घणा बाकी रह्या छे. आखा हिन्दुस्थानमांनी जैन धातुप्रतिमाओना संपूर्ण लेखो मळतां ते उपरथी जैन धर्मपर सारूं अजवाळु पाडी शकाशे तथा जैन कोमपर सारुं अजवाळु पाडी शकाशे. दश पन्नर वर्षे संपूर्ण कार्य पार पाडी शकाय तेम छे. जो साहाय मळे तो.
लेख लेनारा मुनिवरोने धन्यवाद. पाषाणनी प्रतिमाना लेखो लेवानो प्रयत्न अमारा मुनि मित्रो तरफथी प्रयत्न थइ चूक्यो छे. मुनिराज श्रीजिनविजयजी. प्रवर्तक श्रीकां
For Private And Personal Use Only