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मन मोहन तुमे जाण्यु केवल मागसे, लागसे अथवा केडे ए जेम वालजो; वल्लभ तेथी टाल्यो मुजने वेगळो,
भलु कर्यु ए त्रिभुवन जन प्रति पालजो;...........विश्वं. ।।२।। अहो हवे में जाण्यु श्री अरिहंतजी, निःस्नेही वीतराग होय नीरधार जो; मोटो ए अपराध ईहा प्रभु माहरो,
उपयाग में दोधो नही ते वार जो.................. विश्वं. ।।३।। प्रेम थकी सणु धिक् एक पाक्षीक स्नेहने, एक ज तुं मुज कोई नथी संसार जो; सूरि माणेक एम गौतम समता भावथी, वरीया केवल ज्ञान अनंत उदार जो................विश्वं. ।।४।।
(५) श्री गोतमस्वामी विलाप स्तवन
(पंथीडा संदेशो कहेजो श्यामने-ए देशी) शासन नायक प्राण प्रभु हे वीरजी? प्रीतडी तोजी मुज उपरथी साच जो, अलगो कीधो आप कनेथी नाथजी? आवशे जाणे लेवा मुजमां भाग जो, मनमंदिरनावासी व्हाला वीरजी.. ..................ए आंकणी. ।।१।।
भूल्या साहिब हठ करतां न आवडे, होत कडं जो अधिक ना मुज पासे जो, कपट करी मुजथी शुं चाली खरेखर नाथ जो..मन. ।।२ । ।(?)
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