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धातु निर्मित प्रतिमाएँ भी प्रदर्शित हैं. दूसरे खण्ड में जिन मंदिर के विभिन्न काष्ठ एवं पाषाण निर्मित द्वारसाख, देव देवी, शालभजिका, अप्सरा एवं शाहीदाता आदि आकर्षक कलाकृतियों को रोचक ढंग से प्रदर्शित किया गया है.
तृतीय एवं चतुर्थ खण्ड में जैन श्रुत परम्परा से सम्बन्धित सामग्री अनोखेपन के साथ प्रदर्शित की गई है. ईसा पूर्व तीसरी से ईसवी सन् की पन्द्रहवीं शताब्दी तक ब्राह्मी लिपी का विकास, आलेखन माध्यम, आलेखन तकनीक एवं आलेखन संरक्षण के नमूने प्रदर्शित किए गये हैं. इनके अलावा आगम शास्त्र एवं अलग-अलग विषयों से सम्बन्धित हस्तलिखित ग्रंथ भी प्रदर्शित किये गये हैं.
पाँचवे और छठे खण्ड में गुजरात की जैन चित्र शैली के ईसा की ग्यारहवीं से अठारहवीं शताब्दी तक के चित्र, सचित्र हस्तप्रतें, सचित्र गुटके, आचार्य भगवन्तों को चातुर्मास के लिए आगमन हेतु अनुरोध करते विज्ञप्ति पत्र एवं प्राचीन वस्त्रपट्ट, कलात्मक यन्त्र- चित्रादि प्रदर्शित किये गये हैं.
सातवें खण्ड में चन्दन, हाथीदाँत एवं चीनी-मिट्टी की बनी कलात्मक वस्तुएँ प्रदर्शित की गईं हैं, जो दर्शकों का मन मोह लेती हैं. साथ ही यहाँ परम्परागत कई पुरा वस्तुओं का प्रदर्शन भी किया गया है.
यह सामग्री जो दर्शकों को अपने गौरवपूर्ण अतीत को स्मरण कराने के साथ ही जैन धर्म एवं दर्शन के प्रति चिन्तन-मनन एवं इस सम्बन्ध में और अध्ययन के लिए आकर्षित भी करती है. जैन संस्कृति की प्राचीनता एवं भव्यता के प्रमाण समाज को दिखाना एवं उनके प्रति अनुराग उत्पन्न कर इस विषय में शिक्षित करना इस संग्रहालय का प्रमुख ध्येय है.
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