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लुप्त हो रही जैन एवं आर्य संस्कृति के रक्षार्थ तथा मुमुक्षुओं को आत्मोन्नति में सहायभूत अध्ययन हेतु साहित्य उपलब्ध करने हेतु कोबा तीर्थ की पुण्यधरा पर ज्ञानमंदिर का निर्माण करवाया. आपके दादा गुरुदेव की स्मृति को चिरस्थाई करने के लिए इस ज्ञान मंदिर का नामाभिधान आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञान मन्दिर के रूप में हुआ. __ अपने जैसा पहला व कम्प्यूटर जैसी आधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न यह सुविशाल ज्ञानमंदिर पूजनीय साधु-भगवन्तों, मुमुक्षुओं एवं जिज्ञासु गृहस्थों की साहित्य साधना के लिए अभूतपूर्व आयोजन है. यह अपने पाँच विभागों सहित स्वयं में एक विशिष्ट शोध संस्थान है जहाँ जैन धर्म संस्कृति सहित भारतीय कला के नमूनों का अजोड़ संग्रह है. दुर्लभ हस्तप्रतों, पाषाण, धातु एवं काष्ठ प्रतिमायों तथा दुर्लभ कलाकृतियों का संग्रहालय आपके लिए दर्शनीय है. ज्ञानमंदिर के अन्तर्गत अग्रलिखित विभाग कार्यरत हैं- १. आर्य सुधर्मास्वामी श्रुतागार, २. श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार, ३. श्री आर्यरक्षितसूरि शोध सागर (कम्प्यूटर केन्द्र सहित), ४. सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय.
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार : एक शताब्दी में चार-चार अकाल की परिस्थिति में आपद्ग्रस्त हुए श्रुतज्ञान को वीरात् ९८० (मतान्तर से ९९३) में भारतवर्ष के समस्त श्री संघ समवाय को तृतीय आगम वाचना हेतु वलभी में एकत्रित कर आगम के पाठों की वाचना स्थिर करने वाले पूज्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की अमर स्मृति में जैन एवं आर्य संस्कृति की अमूल्य निधि रूप हस्तप्रत अनुभाग का नामकरण किया गया है.
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