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( ७२) धात्मोपयोगे कर्म न लागे, तन्मय तुऊयो थातारे, अनंत पूनिवोनां कमों, क्षगमां दूर पलातारे चा० ३ एक एक योगे जगलोको, अनंत मुक्ति पान्यारे, असंख्य योगोजाणी ज्ञाने, ज्ञानीयो विश्राम्बारे,चा०४ सर्वनयोनो सापेक्ष द्रष्टि, योगे योगो अनेदरे, बुद्धिसागर शुद्धातममां, रहे न योगनो खेदरे चा०५
झघमिया आदिनाथ स्तवन. धादि जिनेश्वर गातां ध्यातां, रहे न झघडा कोयरे, शुद्धप्रेमथी प्रगट प्रभुता, आनंद हेली जोयरे. आ०१ मन वाणी काया तुज हुकमे, वर्तता निज गज्यरे,
आत्माना ताने सहु योगो, पज प्रभु साम्राज्यरे. आ०३ रत्नत्रयो स्थिरता लीनतामां, प्रगटे निश्चय तानरे, युद्धिसागर आत्मोपयोगे, सर्वे भळ्या मन मानरे.या०४
समाप्त.
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