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(७०) कलिकाले तुज शरणुं कीधुं, स्वार्पण करीने सर्वरे; नाम रूपनो मोह रह्यो नहीं, तुज नक्तिमा अगवरे अर्पाइ तुजमां हुं नावे, करूं ते त्हारी नक्तिरे; बुद्धिसागर आत्ममहावीर, प्रगटे अनंती शक्तिरे.
पानसरा० ५
पानसरा०६
पंचासर पार्श्वनाथ स्तवन. पार्श्व पंचायतरा जगतमा जयकरा, पूर्ण आनंद दरियो सुहागो; शुद्ध आत्म प्रनु बोतरागी विभु, पूर्ण ज्योति स्वरूप में ध्याो. पार्श्व० १ रोग नहि शोक नहि सर्व चिंता रहित, सानोति रहित आत्म वरवा; शुद्ध क्षायिक तुजरूप संभारतां, तत्क्षण मोह नहीं शोक परवा. पार्श्व० २
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