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(६३) पांचमनुं स्तवन. पंचमी तप तमे करोरे प्राणी-ए राग. पांचमे ज्ञान आराधना करतां, ज्ञानावरण पलायरे, मतिश्रुत अवधिने मन पर्यव, केवल प्रगट सुहायरे. पांचमे. १ चक्षु अचक्षु अवधिने केवल, दर्शन प्रगटी सुहायरे; मतिश्रुतनुं अज्ञान टळेने, विभंग झट विणसायरे. पांचमे. मति अठ्ठावीश त्रणसे चालीस, भेदे घट प्रगटायरे; चन्द वीश भेदे श्रुतज्ञानी, केवली सरखो थायरे.
पांचमे.३ अवधि ज्ञान असंख्य प्रकारे, मनपर्यव बे नेदरे; केवल झानमा नेद न बीजो, प्रगटे फळती उमेदरे. पांचमे, ४
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