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(३७)
स्तुति. वीर प्रभुमय जीवन धारो; सर्व जाति शक्तिथी, दोषो टाळी सद्गुण लेशो; बनशो महावीर व्यक्तिथी. स्वप्ने पण हिम्मत नहि हारो; कार्योनी सिद्धि करो, वीर प्रभु उपदेशे कांड; अशक्य नहि निश्चय धरो. भाविनावने मानी ले; उद्यम नहि मूको जनो, कर्म प्रमाणे थाशे मानी; आळसु नहि क्यारे बनो. मृत्यु पासे आवे तोपण; उद्यम श्रद्धा राखशो, सर्वे तीर्थकर उपदेशे; तेथी शिवफल चाखशो.
॥१॥
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