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आतम०२
आतम०३
(२६) गुरुने धर्मनी संघनी रक्षा, माटे ऊट मरोरे लोल. जगमां जैनो वधवा हेतके, सहु स्वार्पण करोरे लोल. साधर्मिक देखीने स्वार्पण, प्रीति घट धरोरे लोल जिनने जैननी सेवा नक्तिमां, भेद न एकतारे लोल प्रभुजी संघनी सेवा ते तुज, सेवा विवेकतारे लोल सेवा नक्तिमा छे अनेद के, प्रभुने भक्तमारे लोल. प्रभुजी एवो मुज विश्वास छे, व्याप्यो रक्तमारे लोल. प्रभुनी गुरुनी संघनी सेवा, भक्ति एक छेरे लोल. जैनमा जिनपणुं निरखातुं के, स्वार्पण टेक छेरे लोल.
आतम०४
आतम ४
यातम०६
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