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उद्गारावेशथी रवेल छे. पूर्व पुनिवरोए देववंदन स्तुति स्तवनो वगेरेनी रचना करी छे अने ते सारी ले तो नवीन देववंदनादिनी रचना करवानी शी जरुर हती ? एम केटलाक प्राचीन प्रियवादीओ तरफथी कहेवामां आवे तेना उत्तरमा जणाववानुं के मनुष्यो सर्वे कंड प्राचीन मिय नथी तथा सर्वे के वर्तमान प्रिय नयी. सर्व मनुयोनी भिन्न भिन्न रुचि ले तेथी भूतमां ने वर्तमानमां गमे तेवां स्तवनो वगेरेनी रचना करेली होय ले अगर कराय छे तोपण ते तेओ पोताना योग्य स्तवनने पसंद करे छे. कोड़ने द्रव्यानुयोगनां स्तवन रुचे छे, कोइने स्वामीसेवक भावनां अने तेपां पण अत्यंत पश्चात्ताप करवामां आव्यो होय एवां स्तवनो रुने छे. कोइने प्रभुना बाह्य अतिशयवाळां स्तत्रनो रुचे छे, कोइने आंतर अतिशयवाळां स्तनो रुवे छे. एम भिन्न भिन्न दशावाळा जीवोने भिन्न भिन्न स्तवन रुचे छे अने ते स्वदशा पसंद करे ले एस तेमनी स्वरुचि स्वतंत्रता छे. ते कोइनाथी छीनवी लेवाय ते नथी. जेने जेमां रस पडे ते ते स्तवनो वगेरेथी प्रभुनी भक्ति करीने आत्मानी शुद्धि करे. बाल मध्यम अने ज्ञानी एव वण्य प्रकारना जीवो होय छे. एक मनुध्यमां त्रण दशाओ भगटे है. वाल्यकालमा जे स्तवनी रुने ते मध्यम दशामां रुचतां नथी भने मन्यन दशामां जे रुचेले ते ज्ञानी दशामi aani नथी. कोने भावमुख्य स्वनो रुवे छे. कोड़ने साहित्य कलाविवान दृष्टि स्वनो वगेरे कवे छे. कोइने आत्मज्ञान गर्मित स्तवनो रुवे छे. तेवी स्तवनो अमुक रीति कलाएज
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