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(२४) शुनते धर्म प्रशस्य कषायो, करतां पुण्यने बांधेजी, शुद्ध परिणामे वर्ततां, मुक्ति क्षणमा साधेजी. १ शुन परिणामी सम्यग् दृष्टि, शुद्ध नावने पामेजी, अशुभ कषायो प्रगटया वारे, देहाध्यासने वामेजी; निर्नय निःसंगी बळीयो थै, कार्य करे नहि हारेजी, तीर्थकर सर्वे उपदेशे, प्रभुपणुं घट धारेजी. २ नाम रूपमा निर्मोही थै, प्रभुनक्तो शिव वरताजी, सर्वकार्य करता अधिकारे, भयथी न पाबा पमताजी; मर्दबनीने दर्द सहेसहु, धर्म कर्म व्यवहारेजी, ज्ञान कर्मने नक्ति उपासन-योगने अंतर धारेजी. ३ मुक्ति नवमां समभावी थै, धर्म कर्म नहीं मूकेजी, जीवन्मुक्त बने होये पण, कर्तव्यो नहीं चूकेजी, देवगुरुने करीने स्वार्पण, जैनो जिन थै जाताजी, शासन देवी सेवा सारे, धर्मनी सेवा च्हाताजी. ४
श्री पार्श्वनाथ चैत्यवंदन. पार्श्वनाथ पासे प्रभु, यात्म ज्ञानथी देखे; जमवण आतम नानथी, प्रकट प्रजुनिज पेखे. १
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