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चंद्रप्रभुनी स्तुति. चंद्रप्रभु विभु उपदिशे, जैन धर्म ते साचो, नय सापेक्षाए खरो तेमां नव्यो राचो; आत्मज्ञानने ध्यानथी करो आत्मनो शुद्धि, शुझातम चंद्रप्रभु थातां आनंद ऋद्धि.
श्री सुविधिनाथ चैत्यवंदन. सुविधिनाथ सुविधि दिये आत्मशुद्विना देत, श्रावक साधु धर्म बे तेना सहु संकेत. द्रव्यभाव व्यवहार ने निश्चय सुविधि बेश, जैन धर्मनी जाणतां करतां रहे न क्लेश. शुद्धातम परिणाममां ए, सर्व सुविधि समाय, आतम सुविधिनाथ थै, चिदानंदमय थाय.
श्री सुविधि स्तुति. आत्मिक शुछिनी सुविधि, द्रव्यभावथी साची, बाह्यांतर किरिया भली, स्वाधिकारे राची; करतां चिदानंद परिणति, एज सुविधि सोहे, त्रण जगत्ना लोकना, मन सुविधि मोहे.
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