________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(८)
सुमति ग्रही शुद्ध जावथी, आत्मभावे रमंता, निश्चयनय सुमति प्रभु, आपोआप नर्मता.
पद्मप्रभु चैत्यवंदन.
नवधाभक्तिथी खरी, पद्मप्रभुनी सेवा, सेवामां मेवा रह्या, आप बने जिनदेवा. नवधाभक्तिमां प्रभु, प्रगटपणे परखाता, आठ कर्म पडदा हवे स्वयं प्रभु समजाता. पद्मप्रजुने ध्यावतां ए पूर्ण समाधि थाय, हृदय पद्ममां प्रकटता आत्म प्रभुजी जणाय. पत्रप्रभु स्तुति.
पद्मप्रभुने देखतां देखवानुं न बाकी, पद्मप्रभुने ध्यावतां वने तम साखी; पद्मप्रभुमय थइ जतां, कोई कर्म न लागे, देह बतां मुक्ति मळे, जीत को वागे.
सुपार्श्वनाथ चैत्यवंदन.
सुपार्श्वनाथ वे सातमा, तीर्थकर जिनराजा, पासे प्रभु सुपार्श्व तो, आतम जगनो राजा.
For Private And Personal Use Only
१
१
३
१
१