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(१३९) १९ मल्लिनाथस्तवन. (स्वामी सीमंधर विनति-ए राग.) मल्लिजिन सहज स्वरूपर्नु, वर्णन कहो केम थायरे; वैखरी वर्णन शुं करे, कंइ परामांही परखायरे. मल्लिग १ परमब्रह्म पुरुषोत्तम, अनंगी अनाशो सदायरे; विमल परम वीतरागता, अखय अचल महारायरे. मल्लि०२ निर्भय देशना वासी जे, अजर अमर गुणखाणरे; सहज स्वतंत्र आनन्दमां, जोगवो शिव निर्वाणरे. मलि. ३ चेतन असंख्यप्रदेशमा, वोर्य अनंत प्रदेशरे; छति शुद्ध सामर्थ्य भावथी, वापरो समये निक्लेशरे. मल्लिग ४
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