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( १३४ ) कर्ता-हर्ता चेतन कर्मनो, बाहिर-अन्तर योग; जगत्मां. आत्मस्वनावे रमणता आदरे, प्रगटे शिवसुखभोग. जगत्मां. ५ सुख अनन्तनी लोला ध्यानमां, चेतन अनुभव पाय; जगत्मां. ध्रुवयोगतणी स्थिरता होवे, वोर्य अनन्त प्रगटाय. जगत्मां. ६ सविकल्पसमाधि शुभनपयोगमां, ध्याता ध्येयनो भेद; जगत्मां. शुधउपयोगे शुद्धसमाधिमां, टळतो विकल्पनो खेद. जगत्मां. ७ अन्तरमा उतरीने पारखो, निर्मल सुखनोरे नाथ; जगत्मां. बुद्धिसागर समता एकता, लीनता योगे सनाथ. जगत्मां . ८
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