________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १२६ )
बुद्धिसागर अनुभव - वाजां वागीयां, भेटा शीतल जिनवर जग जयकारजो. प्रीतलडो प्र
११ श्रेयांसनाथस्तवन.
( श्री वीरप्रभु ! चरम - ए राग ) श्रेयांसप्रभु ! अन्तर्यामी क्षायिक- नवलब्धिधणी; त्राता जाता, परोपकारी निर्भय योगी दिनमणि. प्रभु शुद्धस्वरूप त्हारुं जेवुं, प्रभु ! शुद्ध स्वरूप म्हारुं तेवुं, उज्ज्वलध्याने खेंची लेवुं, प्रभु ! नाम-रूपथी भिन्न खरो, प्रभु अनन्तसुखनो जव्य झरो, में स्थिरउपयोगे दोल धये. उत्पत्ति-व्यय-ध्रुवताभोगी. योगातीत पण निर्मलयोगी,
कर्मातीतथी तुं नीरोगी, ध्याने प्रभुनी पासे जावुं, साधनथी साध्यपं पावुं,
For Private And Personal Use Only
श्रेयांस
श्रेयांस. २
श्रेयांस. १