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संभव. ३
संभव. ४
( ११२) शुद्धदेवगुरु हेतु छेरे, उपादान करे शुद्धि उपादान अभिन्न छेरे, कार्यथी जाणो बुद्ध. कार्य द्रव्यथा भिन्न छरे, निमित्त हेतु व्यवहार; शुद्धादिक षट् भेद बेरे, व्यवहार नयना धार. भिन्न निमित्त पण कार्यमारे, उपादान करे पुष्टि; निमित्तवण उपादानथीरे, थाय न साध्यनी स्मृष्टि. पुष्टालंबन जिनविभुरे, आदर्यों मन धरी भाव; उपादाननी शुद्धिमारे, बनशे शुक बनाव. त्रिकरणयोगयी आदर्योरे, मन धरो सायनी दृष्टि;
संभव. ५
संनव. ६
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