________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री. १
श्री.
(८५) द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनय, शुद्ध निरंजन देवा रे. योगी, भोगी, गतभय शोकी, कर्माष्टकथी जिन्न रे; शुद्धोपयोगी, स्वपरप्रकाशक, हायिकनिजगुणलीन रे. अनंतगुण-पर्यायनी अस्ति, समये समये अनंतो रे; परद्रव्यादिकनी नास्तिता, समये अनंती वहंती रे. अस्ति-नास्तिमय शुद्धस्वरूपी, संग्रहनयथो अनादि रे; व्यक्तपणुं शब्दादिकनयथी, सर्व जीवोमां आदि रे. अग्निथी जेम अग्नि प्रगटे, शुद्ध चेतनथो शुद्ध रे; बुद्धिसागर पुष्टालंबन, उपादान-गुण बुद्ध रे.
श्री०३
श्री
४
श्री
५
For Private And Personal Use Only