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(७५) कांइ न लवीए हो. नावे ॥४॥ चौद वर्ष त्रण मासने उपरे, वीशे दिवसे पूरो; विश्रामवण तप थाराधतां, तप रहे न अधूरो हो. भावे ॥५॥ पांच हजार पच्चास छे विल, उपवास शत निर्धार; पूर्ण करे वडभागी तपिया, लब्धि शक्ति भंडार हो. जावे०॥६॥ आहारादि विषयोमा रसवण, आतम आनंद रसिया; क्षणमा मुक्ति पामे निश्चय, भाव तपे उल्लसिया हो. भावे० ॥ ७ ॥ अंतगड सूत्रने आचार दिनकरे, श्रीचंद केवली साध्यु: बुद्धिसागर आत्मोल्लासे, महासेनजीए आराध्युं हो. भावे ॥८॥
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