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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org समता सरवर झीलतारे, हंस सरीखा संत; बुद्धिसागर प्रभु समारे, करे आतम भगवंत. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only जगत्मा० ११ श्रावक. राग प्रभात. श्रावक एवा जाणो साचा, दयावंत उपकारीरे: देवगुरुने घर्मनी श्रद्धा, विवेक किरिया धारीरे. समकित श्रावक व्रतने धारे, करे न दुर्जन यारीरे; स्वाधिकारे कर्म करे सहु, दुष्टासक्ति निवारीरे. केफी चीजो व्यसनो छंडे, थाय नहीं व्यभिचारीरे; दुर्गुण प्रगट्या दूर निवारे, साधु संगति प्यारीरे. श्रावक० ३ दान शीयल तप भावना धारे, दुष्टवासना वारीरे; आतमशुद्धि करवा रसियो, गुरुगम धर्म विचारीरे श्रावक ४ प्राण पडे पण सत्य न छंडे, उत्तमनीति धारीरे; स्वाधिकारे सर्व गुणोने, धरतो ने व्यवहारीरे. समता सामायिकने धारे, राग रोष संहारीरे; षट् आवश्यक करतो भावे, गुरुपर प्रीति भारीरे. श्रावक० ६ बनी प्रमाणिक धंधा करतो, चार भावना धारीरे; सर्वजीवोना हितमां जीवे, सर्वकला ग्रही सारीरे. सद्वर्तनमां प्राण समर्पे, जाय न धर्मने हारीरे; सोगन जूठा खाय न क्यारे, जिनवर आणा धारीरे. श्रावक० ८ गुरुमुखथी शास्त्रो सांभळतो, सेवा भक्ति वधारीरे: विनयी गंभीर दाता साचो, वर्ते भूल सुधारीरे. देशकाल अनुसारे बतें, आवक खर्च विचारीरे; बालला आदि कुरीवाजो, छंडे शक्ति समारीरे. श्रावक ० १ श्रावक० २ श्रावक० ५ श्रावक० श्रावक० ९ श्रावक० १०
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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