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संतो महावीरवाटे चालो.
राग आशावरी. संतो महावीर वाटे चालो, आडं अवडं न भाळो. संतो० अज्ञान रागने रोषने टाळो, अंतरमा मन वाळो; मत पंथ दर्शन मोहने मारो, समजी सिद्धा चालो संतो०१ मुख दुःख मानापमानमां समता, धारी प्रभुने संभारोः सर्चशुभाशुभमां बनी साक्षी, संयम धर्म संभाळो. संतो०२ गच्छक्रिया मतमोह निवारो, निजपरिणतिने सुधारो; देवगुरुनी श्रद्धा धारो, दोष प्रगटता वारो. संतो०३ नि:संग साक्षी उपयोगी थै, शुद्धातममां म्हालो; मारग शूरानो न कंटाळो, वीर बनी वीर भाळो. संतो०४ क्षण क्षण महावीर दिल संभारो, आवे झट भव आरो; बुद्धिसागर महावीर वाटे, आनंदे सहु चालो, संतो०५
सबजग मतकी मारामारी. सब जग मतकी मारामारी, खोपरी खोपरी न्यारी मत है, भूले नर अरु नारी....
........सब. अपने मतमें सब है रगी, अन्यके मतमें न यारी दुनियामें जहां तहां है ऐसा, मतकी बात हे प्यारी. सब०१ अपनी अपनी गावे सवजन, पक्षराग मन धारी; रागद्वेषसे सत्य न सूझत, भूले पंडित भारी. सब० २ अपनी अपनी ताणे सब जन, मत त्यां युक्तिकुं धारीः मनका मतपंथ प्रगटत विघटत, जानत क्या संसारी. सव० ३ रागद्वेष रहित महावीर है, उसको बोध बिचारी; बुद्धिसागर आतम पामत, उतरगए भवपारी. सब०४.
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