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आतम०२
उच्च नीच भेद, मनमा न धारो, शुद्ध स्वरूप संभारो; रागद्वेषे मुझो न मनमां, लेजो मार्ग तमारो. असम रहेतां प्रभु मळे छे, आपोआप विचारो; बुद्धिसागर आत्म प्रभुने, पलक पलक संभारो.
आतम० ३
आतम ! जगमें न है कोउ तेरा.
सोरठ वा आशावरी आतम !!! जगमें न है को तेरा, स्वारय संबंधी है सब; मोहका है अंधेरा....................अम. रागसें जानत है जो मेरा, वह सब रहि है ठेरा संयोगका वियोग है निश्चय, क्या काम बेरा आतम० १ स्वम सरीखा सब है संबंध, पंखीका ला; आखर खाली होगा डेरा, तनु मट्टीका डेरा आतम० २ आतमकुं उपयोगे समरले, नहीं रहे भवका फरा; बुद्धिसागर अनंत ज्योति, परखी ले ब्रह्मचेरा. आतम०३
आत्मबाग. आतम ! ! ! आतम बागमां फरशो, दुनिया मोह हवा झेरीली; त्यां न कदा संचरशो................. .................आतम ! आतम बागमां समशीतलता, ज्ञाननो भानु प्रकाशे; आनंद अमृत वायु वातो, जन्मजरादुःख नासे. आतम०१ दर्शन चंद्रमा नित्य प्रकाशे, शक्ति अनंत उल्लासे; अनंत गुण घेलडीयो विलासे, पर्याय वृक्ष विकासे. आतम०२ असंख्यप्रदेशीआतम बागमां, भूख तृषा नहीं लागे; माया मोहर्नु छतीपणुं नहीं, रागद्वेष न जागे. आतम०३
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