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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ आतम. ३ जगमां कोई न कोइनुं, योग तेनो वियोग प्यारो प्यारी न जडविषे, न्यारा देहने भोग, आंसु न पाडशो पाछळे, समजो सहु लोको; आतमा हुं हुं म नहीं, पाडों नहि अरे पोको. आतम. ४ नामने रूपनो अंत छे, यादी तेनी शुं ? राखो; भोळा क्यां भूला भमो, आतमरस चाखो. निज उपयोगमा आतमा, रही देहने छंडे; For Private And Personal Use Only आतम. आतम. १० साक्षी बनी दुःख भोगवे, मोह त्यां नहीं खंडे. आतम. ६ अंतरमां आनंद छे, कोई इच्छा न भीतिः आतमनी न्यारी गति, न्यारी पुगलरीति. भक्त शिष्य सहु लोकने, जीवंतां खमावुः आतम उपयोगे रही, निज देशमां जावं. करो अने करशो कदी, सुज नामनी यादी; सुज पाछळ प्रभुदेशमां, आवशो शिख सादी. आतमरूपे जीवता, बन्या नहीं मरवानुं : आतम प्रभुने पामियो, हवे नहीं खरवानुं. जीवंतां मरी जीव, ब्रह्म जीवन लहियुं; निश्चय शुद्धोपयोगमां, बाकी जड नहि रहियुं. आतम. ११ जडजगमां देह प्राणने, कर्मनी बहु माया; आतमज्ञाने जागतां जाण्या पडछाया. अग्नि बाळे हे देहने, नहीं आतम बाळे; आतमना उपयोगमां, जोर कोनुं न चाले. मन बुद्धि पहोंचे नहीं, एवं आतम ठाम आतम अपने न अन्यनुं, सिहां किचित् काम आतम. १४ मरबुं शीखो मर्या पूरवे, शोक चिंता न करशो मन मार्यावण मानवो !11, कदि ठाम न ठरशो. आतम. १५ भातम. १३ ५ आतम, ७ आतम. ८ आतम. ९ आतम. १२
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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