SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० अब. अज अविनाशी अमर अलख हम सब भयकुं हि निवारा; कालके काल महाकाल हम, पूगुल मोह उतारा. ब्रह्मरूप हम ब्रह्म समाए, ज्यां नहीं द्वैत पसारा: देह रहा संसारकेमांही, हम नहीं है संसारा. सबसे न्यारा शुद्धब्रह्म हम, बावन अक्षर व्हारा; हम है प्यारी हम है प्यारा, गुण पर्यायाधारा, पंचभूतसे न्यारा इस है, सर्व विश्व आधारा; बुद्धिसागर आतम पाया, आनंद अपरंपारा. अब ३ For Private And Personal Use Only अब ४ अब, ५ अवळीवाणी. सोरठ. हमने ए सब ज्ञाने दीठा, अज्ञानीकुं एह अनीठा.ज्ञानी मनमें मीठा.... हमने. एक बुंदम अधि समायो, सब संसार समायाः एक अनेक न तेज न तम नहि, सिंहां जाकर ए गाया. हमने. १ चन्द्र अग्नि ज्वलत है भारी, रवि शीतलता प्रकाशे; हमने. २ ,. हमने, ३ मूषक खावे सब सपकुं, पंगु गगने विलासे. एक नपुंसक विश्वकुं जीते, नारी विश्व नचावे: अन्धक साचु नानुं परखे, संतकुं वेश्या भावे. दासकी इन्द्र करत है सेवा, खद्योत रविकुं हरावे; पलवल में सब दुनिया डूब गई, भारङ महीं स्थिर थावे. हमने, ४ पृथ्वी उपर नाव चलत है, गौ सब जगकुं खावे; बुद्धिसागर गुरुगम जाने, वह शिवसुखकुं पावे. इसने ५
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy