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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५ सतो पडिया वेश्या प्यारे, राजा बकरां चारे; शूरा जन नपुंसकथी हारे, सत्य ते बावन व्हारे. भूप प्रजानी आणा माने, माछलां व्याधने ताणे दुनिया भरखी भरिया भाणे, मुक्ति लडाइ ठाणे. उदधि उपर पत्थर तरता, पहाड चले आकाशे; बुद्धिसागर आतम समजे, साधुं सहु समजाशे. संतसेवा. सोरठ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only संतो. ५ संतो. ६ संतो. ७ • २ सेवो संत सदा सुखकारी, प्रभु साकार सदा छे संतो, आपे शिवसुख भारी सेवो. पोतानो रंग देइ दे पलमां, पलकमां पाप निवारी; पारसमणियी पण जे अधिका, संगति शिव दातारी. सेवो. १ काशी मका तीरथ भटको, पण नहि आवे पारी; संतनी संगत क्षण पण करतां, भ्रांति हरे दुःखकारी. सेवो. जीवंता शास्त्रो छे संतो, सात्री संतनी यारी; संत विना वैकुंठ शा खपनुं, ? जो जो शास्त्र विचारी. आतमज्ञानी निरभिमानी, समभावी उपकारी; संतहृदयमां प्रभु परगट छे, समजो नर ने नारी. श्रद्धा प्रीतिने बहु माने, सत्य संत दिलधारी; बुद्धिसागर संतनी सेवा करतां शांति अपारी. सेवो. ३ सेवो. ४ सेवो. ५
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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