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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ अंतर भूली बाहिर शोधत, जगमें होवत हांसी; मक्का काशी पहाड क्या ढूंढे, जलमें मीन ज्युं प्यासी. सब तीर्थ है आतममांही, दिल्दार है दिलबासी, बुद्धिसागर परम ब्रह्ममय, ज्ञानानन्द विलासी . आतम. आतम. For Private And Personal Use Only २ प्रभुने. सोरट वा आशावरी. प्रभु तुज अकळ कला न कळाती, समज्यां नहि समजाती. प्रभु. जेवी कूपनी छाया कूप, ममट थइने समाती; तेवी रीते माहारी बुद्धि, त्हारो पार न पाती. उदधिनी उडाइ मापवा, लुणनी पूतळी जाती; सागररूप बनी ते जाती, माफ कदापि न पाती. प्रभु ॥ २ ॥ वेदागम मत दर्शन शास्त्रो, वांच्यां बहु भकी भाति प्रभुः ॥ १ ॥ घर. सोरठ. संतो ज्ञाने निज घर जाना, कहां न जाना आना, संतो. पंचदेह परपंच नहि जिहां, राग न द्वेष ठिकाना; ३ धारणा ध्यान समाधियोगे, शांखी कंइक जणाती प्रभु ॥३॥ अम्ल अगोचर अगम अख्मी, अनंत ब्रह्म हयाती: ढांक्यो सूरज रहे न छानो, तुज महिमा एम भाति प्रभुः ॥४॥ अनंत जलधिमां बुंदनो सरस्खी, षड्दर्शन मति थाती; असंख्य लक्षणे लक्षित करतां, थाकी बुद्धि मुंज्ञाती प्रभु ॥१५॥ एम छतां पण माहरी छाती, तुज़ प्रेमे उभराती; बुद्धिसागर आतम ख्याति, चिदानंद सुहाती प्रभु ॥ ६ ॥
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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