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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगी. अवधूत वैराग्य बेटा जाया. ए राग. सोरठ-आशावरी. जोगी ऐसा जोग जमाया, त्याग भभूत लगाया. जोगी. शुद्धप्रेमकी मस्ती पाया, योग जटाकुं धराया; शील लंगोटा सत्संग मुद्रा, क्रिया कुंडल लगाया. जोगी. १ सत्य ग्रहण इच्छाकी झोळी, व्रतरूपचीपिया च्हाया। प्रभु तन्मयता तपकुं तपीया, स्थिरता आसन पाया. जोगी. २ स्थिर उपयोगकी पवन पापडी, ब्रह्माकाश विचराया; मतिश्रुत ज्ञानका शंख बजाया, प्रेमका प्राण जगाया. जोगी.३ मन पवन माया कर वशमें, जीत निशान चढाया; देह देवलमें प्रकट प्रभु शिव, स्वयं सदा परखाया. जोगी. ४ कर्म काष्ठ ओर भक्तिकी धूनी, ज्ञानाग्नि प्रजलायाः तत्त्वमसि सोऽहं उपासना, अपामाप जपाया. जोगी. ५ 'धारणा कुंडी ध्यानका गांजा, दिल शिलामें घुटाया; गुरुगम पानी सेवासाफी, संयम चलम फुकाया. जोगी. ६ उपयोगका दमजोरे कुंकाया, ब्रह्मसमाधि चढाया; आतम आनन्द रसकुं पाया, परमब्रह्मरूप पाया. जोगी. ७ अलख अलख मुखसे उच्चराया, पाया सो न कथाया; नेति कथी निजमाही समाया, ऐसी कमाणी कमाया. जोगी. ८ स्थाग नहीं ओर ग्रहण कछु नहीं, आपो आप सुहाया बुद्धिसागर पूर्णानन्दी, अलख अमर हो जाया. जोगी. ९ - For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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