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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ शुद्धप्रेम प्रभु है पासे, ज्ञानसें प्रभुकुं जगावो रे. समतासें तन मन की शांति, जपने पडता न जापो; मोहतापकुं दूर करो झट, क्रोधकुं मन नहि छापो रे. शुद्धमकी धूनी धखावो, शील लंगोट लगावो; ज्ञानाग्नि दिलमां प्रकटावो, ऐसा योग कमावो रे. नामरूपकी विषय वासना, उनकुं दूर हटावो; प्रभुसें एकरूप हो जावो, ज्योति ज्योत मिलाबो रे. दुनियाकुं क्या तप देखाना, प्रभुसें तान लगावो; आनंदरसका प्याला पीकर, मस्ताना हो जावो रे. प्रभुविरहतपसें तन मनका, ताप, धूणी कहां ? तापो शुद्धप्रेमसें दिलमां परगट, चिदानंद प्रभु व्याप्यो रे. कष्टकी कोडी किंमत कोडि, ऐसा तपकुं न च्छावो; बुद्धिसागर आत्मप्रभु है, आपकुं आप मिलावो रे. तपिया. २ तपिया. ३ तपिया. ४ तपिया. ५ तपिया. ६ तपिया. ७ तपिया, ८ आत्मधर्म. राग सोरठ. आतम धर्म हे न्यारा - साधु भाइ आतम धर्म हे न्याराः मनवाणीकायासें न्यारा, निरंजन निराकाराः For Private And Personal Use Only साधु, २ तप जप व्रतसे भिन्न अपारा, ज्यां नहि मोह प्रचास. साधु. १ सत्व रजस्तम गुण कर्मोंसें, न्यारा है निर्धारा मनसंकल्प विकल्पसे न्यारा, पुद्गल धर्मसें न्यारा, दयासत्यास्तेयादिक सब, साधनधर्मसे न्यारा; पूर्णानन्द रु पूर्ण ज्ञानमय, आतमरूप अपारा. नय अरु भंग निक्षेप विचारसे, न्यारा हे अविकारा; बुद्धिसागर आतम धर्मकुं, जाना भयकुं निवारा. साधु, ३ साधु. ४
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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