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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मजा भली मुज बोधे थाय, मुज बोधे बर्वे दुःख जाय; पाले मुज आज्ञा अनुसार, प्रजाभप शुद्धि निर्धार. भूप प्रजामां वर्ते ऐक्य, प्रामाणिक वर्तननी टेक अरसपरस उपकारी थाय, आतम ऐक्ये विश्व मुहाय. योग्य सलाहे वर्ते वेश, देश जात धर्मे नहि क्लेश, सहुमां मुजने देखे भव्य, तेनां सफलां छे कर्तव्य. प्रजावर्ग एवो ज्यां होय, परमातम त्यां जागतो जोय; मळके रुडी मारी ज्योत, प्रजाजीवन प्रगटे उद्योत. दारुआदि व्यसन निषेध, मतभेदोथी थाय न खेद हिंसायज्ञतणो न प्रचार, तेह प्रजामां शांति अपार. मारुं शरण करी जे रहे, मुजजापे जीवन जे वहे; अटल धरे मारो विश्वास, तेह प्रजानी चडती खास. मारी शक्ति अपरंपार, कोइ न पामे मारो पार; मुजरूपे थे मुजने भजे, सत्यप्रजा मुजपदने सजे. दुर्गुण दोष त्यां पडती थाय, निजनी भूलो नहि समजाय%; सद्गुण त्यां प्रगति छे खास, पामे पूरण मुज विश्वास. नामरूपमा मोह न थाय, स्वाधिकारे कार्य कराया आनंदे दिलसर उभराय, भक्तमजा मुजरूपने पाय. व्यष्टि समष्टि आतमवीर, जाणी थावे योगी धीर; अवगुण ढांकी गुणने आहे, भव्यप्रजा मुज पदने लहे. निंदा लवरी विकथा तजे, जेना तेना सद्गुण भजे . दोष कर्यानी मागे माफ, मनने राखे सारं साफ. राज्यतणी सहु नीति जाण, करे न राजानुं अपमान, दुष्ट अधर्मी भूपने दूर, कादी पामे शांतिपूर. For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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