SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कर्मोदयथी थाय न दीन, आतमने भाषे मन जिन; करे न अन्यनुं बूरु लेश, पीते वैर शमावे वेश. साधर्मिक खबरावी खाय, साधर्मिकने आपे स्हाय; उच्च नीचनो घरे न भेद, टाळे ज्ञाने सहुना खेद. लघुता दृढता श्रद्धा प्रेम, आतमज्ञानने दिलमां रहेम चारित्र्ये ज्यां जीवन जाय, एवा संघनी चडतो थाय. भूख्यांने खवरावे जेह, तरश्यांने जल धारे स्नेह; करे न शक्ति दुरुपयोग, रोगीओना टाळे रोग. दुष्टरीवाजो करवा दूर, शक्ति फोरवी थातो शूर करे न निन्दा परनी लगार, कोइपर नहि देतो आळ. शुभक्षेत्रोने पोषे नित्य, दोष त्यजी गुण धारे चित्त; हिंसादिकसे काढे दूर, एवो संघ जगत मश्हूर. दानशीलत भावपवृत्ति, नोति महाजन गुणनी रोति; नवतत्वोनुं धारे ज्ञान, संघनी भक्ति दिल भगवान. इत्यादिक कोटी गुणवान्, संघ छे प्रत्यक्ष ज भगवान् ; प्रभुसाकार खरो छे संघ, तेनो क्षणक्षण करशो संग. संघ के प्रत्यक्ष ज गुणवंत, साकारी ईश्वर के संत; तेनी सेवाथी प्रगटाय, घट घट आत्मप्रभु सुखदाय. संघथी मोढुं नहीं छे कोय, सर्वधर्मीनी खाण ज जोय; संघने सर्व महाउपमान, पूजो बंदो भवी गुणजाण. एक तरफ सहुधर्मो होय, एक तरफ संघसेवा जोय; बन्ने सरखां जाणो भव्य, संघनी सेवा छे कर्तव्य. साधर्मिकभक्तिनां कर्म, एक तरफ छे सघळा धर्म, उ सरखा जाणो दक्ष, धरो संघसेघानो पक्ष. For Private And Personal Use Only ४२ ४३ ४४ ४. ४६ ४७ ४८ ४९ ५० ५१ ५२ ५३
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy