SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४१ साधुं ० ५४ साचै० ५६ साधु० ५७ संतोषे मन वर्ततुंजी, विषयोपां नहीं राग; प्रतिकूलमां नहीं द्वेषताजी, प्रगटे समने त्यागरे. शत्रुपर नहि द्वेषताजी, क्षमा अने शुद्धबुद्धि; देवगुरु आराधतांजी, प्रगटे आत्मशुद्धिरे. आतमशुद्धिहेतुओजी, द्रव्यने भावथी जेह; अवलंबे मोह ज टळेजी, देहछतां वैदेहरे. आतमवण जडतश्वनीजी, सहेजे ममता विलायः जडमां अहंता नहि रहेजी, जड जडभावे रहायरे. साचुं० ५५ आत्मोपयोगे परिणमेजी, आतम पामेरे मुक्ति; 'माटे शोकादि त्यजीजी, आचरो धर्मप्रवृत्तिरे. आतम उपयोगी थतांजी, टळता मोहविचार; "तनुमो शोक रहे नहींजी, मगटे धैर्य अपाररे. आतपना अज्ञानथीजी, वर्ते मोहनुं जोर; जडमां हुं तुं नहीं रहेजी, रहे न कामनो दोररे. रोइ रोइने मरी जांजी, पालुं आवे न कोय; आत्मस्वरूपने जाणतांजी, साची शांति होयरे. समजीने निश्चय करोजी, मनडुं राखोरे शांत; धर्ममार्गपर चालतांजी, रहे न मिथ्याभ्रांतरे. कर्मानुसारे जीवोजी, परभवमांहीरे जाय; कर्मविपाको भोगवेजी, एवो वर्ते न्यायरे. कर्मने आतम बेनोजी, काल अनादिथी संग कर्मवियोग येतां भलोजी, प्रगटे शुद्ध ज रंगरे. आतमज्ञानी न बांधतोजी, कर्म करे ने अकर्म आतपना उपयोगथीजी, निरासक्तिए धर्मरे. For Private And Personal Use Only साचुं० ५२ साधुं ० ५३ साचुं० ५८ साचुं० ५९ साघुँ० ६० साचु० ६१ साधुं० ६२ साचु० ६३
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy