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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुभ उपयोगे शुद्धोपयोमे, रही वर्ते आचारेरे बुद्धिसागरसंघनी सेवा, कारीने कर्म मिवारेरे, ॥आर्य अने अनार्य.॥ ए गुण वीरतणो न विसारं. ए राग.. गुणकर्मोथी आर्य अनार्यमां-, लक्षण जुजुवा जाणोरेः मनवाणीकायथी आर्यपणाने, समजी आचारमा आगोरे. गुण.१ प्राण पडे पण न्याय न मूके, प्रामाणिकता न करे। दानदयादममंत्रने फुके-परधन उपर थूकेरे. दुश्मन पण घेर अतिथि थेने, आवे करे सत्काररे; स्वासतसेवामां बाकी न मूके, आर्यना सत्याचाररे. सत्य सरलता शुद्ध प्रीतिथी-आर्यों जगमां सनरारे; हिंसाजूलुलूडकपटमां, पापे अनार्यों के पूरारे.. गुण०४ सजनता सभ्यता सहदयता, होय नहीं व्यभिचारीरे; देवगुरुधर्मश्रद्धाधारक, आर्यों धरे सत्ययारीरे. गुण०५ दुर्जनता शठता लंपठता, व्यभिचारी अनाचारीरे; मानन मारीने हाथ न धूवे-पापाहार आचारीरे. गुण०६ क्रोधी मानी लोभी पूरा, अनीतिस्वार्थमां पूरारे प्रत्यक्षरासस जेवा तमोगुणी, निर्दय लुचा क्रूरारे. गुण ७ देव न माने धर्म न माने, एका अनार्य मतीलारे; माज्ञानु परपीडा करे नहीं, आर्यजनो छे रसीलारे. गुण.४ पंचेन्द्रियभोगे सुख माने, बहिरातमजडवादीरे; पाप गणे नहीं हिंसा जूठमां, अनार्यो उन्मादीरे. दार.. गुणः ९ आतममां सत्य आनंद माने, दुर्गुण व्यसनो टाळेरे; आलोक परलोक धर्मने माने, सद्गुणयां मन वाळेरे, गुण.१० For Private And Personal Use Only
SR No.008545
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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