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११३ आतम !! ताह्यरो था उपयोगी. सोरठ.
आतम !! तारो था उपयोगी, नित्य निरंजन निर्मलज्योति;
पुलयोगे अयोगी....
. आतम०
पुहलनाशी तु अविनाशी, देहरोगी तुं अरोगी, पुद्गलरूपी तुं छे अरूपी, ज्ञानानंदनो भोगी. काल अनादि अनंत तुं आतम, हत नहीं शोकी; वर्णगंधरसस्पर्श न शब्द न, अलखदशा तुज नोंखी. उपयोग धर्म छे उपयोग किरिया, मोहे या नहीं ढोंगी; बुद्धिसागर ब्रह्मस्वरूपी उपयोगे प्रभुयोगी.
आतम !!! निज उपयोगे रहेशो. सोरठ.
आतम० १
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आतम० २
आतम !!! शुद्धोपयोगे रहेशो, मोहपरिणति प्रगटी चारो उपयोग धर्मने वहेशो.
आतम० ३
आतमः
उपयोगे कर्म अनंतां खरतां, निजगुण निजने देशो; त्रण्यभुवन शहेनशाही छे तुजमां, पामो शित्रसुख लेशो. आतभ० १ अनंत आनंद आतममांही, लेश घरो न अंदेशो; बाहिरबुद्धि तभी अंतरां, शुद्धबुद्धिथी प्रवेशो. असंख्य तीर्थकरनो एवो, आतमशुद्ध संदेशो बुद्धिसागरशुद्धातसमां, उपयोगे ठरी बेसो.
आतम० २
आतम० ३