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आनंदरस अमृत चाखो रे. राग गोडी. निशानी कहा बतावु रे. ए राग. आनंदरस अमृत चाखो रे, पुद्गलास करी दूर. आनंद० आतमरस पाम्या पछी रे, पुद्गलरस न चहाय; आतमरस अनुभव थतां रे, पुद्गलरस टळी जाय. ___आनंद० १ कोटि उपायो केळवे रे, टळे न जडरसराग; आतमरसने स्वादतां रे, सहेजे जडरसत्याग. आनंद. २ आत्मज्ञानथी प्रगटतो रे, आतमरस भरपूर क्षणिक जडरस पाछळे रे, दुःख विपचि हजूर. आनंद०३ देहइन्द्रिय मन शांतथी रे, सुख न शांति लगार; आतमरस पाम्या पछी रे, रहे न जडरस प्यार. आनंद०४ आतमरस छे आत्ममां रे, आतमनी नहीं बहार; बुद्धिसागर आत्ममां रे, आनंद अपरंपार. आनंद०५
प्रभुका धर्म सो धर्म हमारा.
राग कान्हरो. प्रभुका धर्म सो धर्म हमारा, माया धर्म सो धर्म है न्यारा; प्रभुका वर्ण सो वर्ण हमारा, प्रभुका रूप सो रूप हमारा. प्रभु हमारा दिलमें समाया, प्रभुके रूपमें हमभी समाया; प्रभु सो हम है हम सो प्रभु है, सत्तापेक्षा एक विभु है. प्रभुकी जाति वह हम जाति, देह जाति है मिथ्याभ्रान्ति; प्रभु है अरूपी हम है अरूपी, सापेक्षातो रूपारूपी. प्रभु है जैसा हम है तैसा, प्रभुका देशा हमका भी देशा; बुद्धिसागरप्रमुसंदेशा, सुनते दिलमें रहा न अंदेशा.
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