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१०७ साधुभाइ!!। मनवशकरणा न सहेला.
सोरठ. साधुभाइ मनवच करना न सहेला, ज्ञानी तपसी गए बहुत लपसी मेनमारण मुश्के ला................................................साधु० हरिहरब्रह्मान्यास न जीते, सबमें है सबसे अकेला; भनेकरूपसे मनके वश जग, खेले अगणित खेला. साधु०१ कबहुक दीनने कबहु मर्द है, कबहु दक्ष बहकेला; कपा आतमवश होइ बर्ते, छटकी करत बहुफैला. साधु० २ मन ओर आतम भिन्न हुवे तब, मिलता है मुक्तिमहेला; बुद्धिसागर आतमजीतसें, मन नाहि दक्ष रु पहेला. साधु० ३
आतम!!! जग सब जूठो बाजी. ॥
राम आशावरी. आतम ! जग सब जूठी बाजी, होवत कहा वहां राजी. आतम० मन बाजीगरकी सब बाजी, होना क्या गजी नराजी; पढकर भूले पंडित काजी, कोउकुं कबहु न छाजी. - आतम० १ मोहकें वश क्या होवत पाजी, रहे न चक्री गाजी; बुद्धिसागरप्रभु अपनाजी, दूजा सब स्वमाजी. आतम०२
भायम छालंगाना, मोह अयाद सत्यता भगाना
आतम! आपकुं आप जगाना.
सोरठ. आतम! आपकुं आना, मोह प्रमाद शयतान भगाना; आपमें मनकुं लगाना.............
.......आवम०
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