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॥ अरिहंत आतम नजरें आया || जिनदर्शन मोहनगारा -- ए राग.
अरिहंत आतम नजरे आया, जानें मनवाणी नहीं काया रे. अरिहंत० मनवाणीकायासे अगोचर, मिटगई मोहकी छाया;
अस्तिभाति प्रियरूप है नहि है, ब्रह्ममहावीर व्हाया रे. अरिहंत० ॥ १ कर्ता अकर्ता हर्ता अहर्ता, षट्कारकमयपाया पूरणआनंद पूरणज्ञाने, परमब्रह्म सुहाया रे. ऐसा आम सबका साक्षी, हुं तुं भेद विलाया; बुद्धिसागर आपोआपही, परमेश्वर परखाया रे.
अरिहंत० ॥ २
अरिहंत० || ३
आतम ! कर्मसें कुच्छ न डरना. सोरठ.
कर्मसें कुच्छ न डरना, आतम !! कर्मसें कुच्छ न डरना; कर्मका स्वमा जागंतां नहि निर्भय होकर फिरना. आतम आतमज्ञान प्रकाशे कर्मतम क्षणमें विणसे समजना; कार्यो करंतां निर्लेपभावे, कर्म न लें कुच्छ अपना. आतम उपयोगे सब करतां, किसकी भीति न धरना; करना तो पिछे कबहु न डरना, अच्छा होवत मरना, आतम० २ भय चंवलता खेदकुं हरना, आत्मप्रभुकुं समरना; बुद्धिसागर आनंदवरना, आपोआपकुं तरना.
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आतम० १
आतम० ३
प्रभुदर्शन घटमें पाया.
जिनदर्शन मोहनगारा, जिने कर्मकलंक पखारा रे--ए राग. प्रदर्शन घटमें पाया, घट आनंदसे उभराया रे, प्रभु० आपोआप प्रभु समजाया, नामरूप नहीं माया; पूरणज्ञान रु पूर्णानन्दी, परमब्रह्म परखाया रे.
प्रभु० १