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मुनिं गुरु अवलंव्याथी साधुं समजाशे, ज्ञानी मुनिनां वचने शाश्वत सुखडां थाशे; सेवो सद्गुरु संत सदा जे ज्ञाने भरिया, धरो ज्ञानथी ध्यान मुनि अनुभव सुख वरिया; सद्गुरु मुनिवर सेवतां तत्त्वामृतनी क्यारी छे, आसन्नभवि सुश्रावकोना दिलमां सदा ते प्यारी छे. ॥ १०१ ॥
ज्ञानी ध्यानी वीर शूर वैरागी पूरा, धर्मक्रियामां रक्त नारीथी रहेवे दूरा: विकथानो परिहार ब्रह्मनी गुप्ति धारे, लही आत्मनुं ज्ञान, वृत्तियो तेमां ठारे: नहि ममता के मान के मुनिगुरु गुणखाण छे, करी उपाधि दूर जेथे सद्गुरु मुनि भाण छे. ॥ १०२ ॥ ममतावारक, समताधारक, ध्याने धोरा, धर्मधुराना धारक जिनशासनमां वीरा; उत्सर्ग अपवाद सूत्रनी शैली जाणे, करी कुयुक्ति मति दोषधी अर्थ न ताणे; जैनशासन उन्नतिना कर्ता साधु साच छे, पंचमेरुभार संयम धरे सत्य तो वाच छे. ॥१०३॥ रंगाणी छे धर्मरागथी जेनो काया, धन्य धन्य ते कूळ' मुनिवर जेमां जाया; अगंधनकूळ नागटेकने मनमां धारी, निश्चल सुरगिरि जेम साधुजी गुण. गणकारी; वन्दन वारंवार छे, धन्य धन्य अनगारता, आप तरे ने अन्यने जे देशनाथी तारता. ॥ १०४ ॥
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