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गुरू गृहस्थी होय नहीं जाणो त्रिकाले, दुःषम काळ प्रभाव तेहना चढिया चाळे, घूकदृष्टिथी मुनि गुरुने कदा न भाळे, मिथ्या मदिरा घंन चढाव्यु पंचम काळे, मनमां आव्यु मानता आतमने नहि तारता मृत्यु ज्यारे पास आवे हाय हाय उच्चारता. ॥२७॥ गुरू गृहस्थी कया सूत्र आधारे मानो, साचुं बोलो सत्य भर्म नव राखो छानो, नहीं ग्रन्थनी साख नवीन पन्थे अवधारो, नहि सूत्रानुसार वात आवे निर्धारो, पिस्ताळीस आगमविषे वातन एवी दाखवी, तो दुर्गति मेमान थइ केम जूठोवाणी
भाखवी. ॥५॥ नहीं सूत्र प्रमाण करो तो पापी पूरा, सूत्र विना नहि गति एम समजे छे शूरा, सूत्र कहो प्रमाण तदा सहु वात ज लेखे, गुरू गृहस्थनो त्याग करी मुनिवरने पेखे, समजो समजु सानमां शाश्वत साधु पन्थ छे, याह्याभ्यंतर ग्रंथि त्यागी मूनिमहा निर्गन्थ छे. ॥१९॥ मुनिवर दे उपदेश भव्यनी दुर्मति टाळे, अनेकान्तमतवित् सदा संयम अजुवाळे, करता पर उपकार धर्मनां मोटा धोरी, बोले साचु वेंण कदा नहि करता चोरी, गामोगाम विहारथी सहु जीवोने तारता, वांची जिननी वाणीने तेमोह शत्रु मारता. ॥६॥
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