________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૩૬પ
काळ अनादि तीर्थकरनी वाणी बोले, मुक्तिना महा मार्ग साधुनी कोइ न तोले, वैरागीनो वेष बेश आचारे चाले, अध्यातमना रस ग्रहीने मनमां म्हाले, मुनिवर एवा वंदतां मुक्ति मारग लीजीए, सडेल गृहि कुपैथडामां चित्त कबुनाहि दीजीए. ॥४९॥ निर्मल मुनिवर हंस सरोवर समता म्हाले जोइ मारग चक्षुथकी जयणाथी चाले, बसस्थावर प्रतिपाल जगत्मा जेह दयालु, 'परोपदेशे दक्ष मुनिवर महा कृपालु, कनक कामिनी परिहरी उपकारकती देखीए, पुण्यानुबंधोपुण्ययोगे परगट प्रेमे पेखीए. ॥५०॥ निश्चयने व्यवहार धर्मथी व्रत अजवाळे, द्रव्यानुयोगे धार्मिक जीवन सहु गाळे, अध्यातम सुवास हृदयमा निश्चय वासे, आतमनो उपयोग हृदयमा झळहळ भासे, व्रताचारे वेषने ज्ञाने मुनिवर शोभता, द्रव्यभाव या ग्रहीने भव्यजीवने थोभता, ॥५१॥ कनक कामिनी जूठ एम तो सहुजन कहे छे, पण काइ विरला भव्य तेहने त्यागी दे छे, दुःखपदा माया बहु सहु जन मुखथी भाखे, जाण्यं तेनुं धूळ रागथी तेने राखे, जाणवू ते सहेल छे ने त्यागवू मुस्केल छे, जाणी विषयो त्याग करवा नहि बालकनो
खेल छे. ॥५२॥
For Private And Personal Use Only