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उ४३
स. ८
जीबंता धरता उत्तम व्यवहारजो; वेषमतादिकभेदे द्वेष धरे नहीं, आप मरे पण अन्यने दे नहीं मारजो. देव गुरुने धर्मनी श्रद्धा धारता, ज्यां त्यां सत्यनुं मान करे गुण पात्रजो; मैत्रीमुदिता करुमा भावना भावता, साक्षी थै वर्ते दिवसने रात्र जो. निष्कामी थै वर्ते सर्वे काजमां, आतम भावे वर्ते सौनी साथजो; एवा सज्जन संतने सहु स्वार्पण करी, श्रद्धा प्रेमे भजो त्रिभुवन नाथजो.. बहु परिचय करीने संतने पारखी, संत समागम करो सदा सुखकार जो; बुद्धिसागर संत समागम धारो, पामो शांति तुष्टि मंगल मालजो.
स. १०
धर्मी बनो नरनार.
धर्मी बनो नरनार, एहवां धर्मी बनो नरनार. दया करो सर्व जीवो उपर, द्वेष धरो न लगार; भूख्याओने भोजन आपो, करो खरा उपकार. एहवां. १ वैरी उपर वैर न धारो, सत्य धरो व्यवहार
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