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व्यभिचारनी वृत्ति परिहरशो,नीतिमय जीवनने धरशा; सद्गुरु साधु सेवा करशो.
प्रभु. ३ निज अधिकारे को करा,निष्कामपणुं दिलमां धरशा; निज फर्जथी पाछा नहि फरशो. प्रभु. ४ दुर्गुण व्यसनाने परिहरा, बूरां कर्मों नहीं आचरशो; उपकार परस्पर झट करशो.
प्रभु. ५ प्रतिवदलानो इच्छा त्यागी, परमार्थ करो थे वैरागी; गुरु संतना थाशो बहु रागी.
प्रभु. ६ गुरुदेवनी श्रद्धा दिलधारो, अधिकारे धरो व्रत आचारा; दुष्टाशय प्रगट्या झट वारो.
प्रभु. ७ शुद्धातम उपयोगी थाशो, समभावे वर्ती शिव पाशा; आडा पन्थे कदि नहीं जाशो.
प्रभु, ८ समकितने ज्ञान चरण धरशा, दुष्ठोनीसंगत परिहरशा: प्रभु महावीरने पल पल स्मरशो. प्रभु. ९ आगम श्रुत ज्ञानने सांभळशो, प्रभु महावीरनी वाटे वळशो, भवसागरने वेगे तरशा. प्रभु. १० मरजीवा प्रभु मारग चालो, निज धर्म धरी शिवपुर भाळो; बुद्धिसागर सुखमां म्हालो. प्रभु. ११
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सज्जन संतनां लक्षण एवां जाणशो.
सज्जन संतनां लक्षण एवां जाणशा, सज्जन संतने सेवा नरने नारजो.
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