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मनुष्यो स्वराज्य लायक थाशे . रांग. आशावरी.
स्वराज्य लायक थाशा, मनुष्यो !!! स्वराज्य लायक थाशा. देश खंड सर्व विश्वमां आतम दृष्टि घरी सुख पाशा, सर्व जीवा छे प्रभुनां बालक, आपो सहुने दिलासा. म. १ दुनियामांथी व्यसना निवारा, राखा प्रभु विश्वासे; हिंसाकारक युद्धे निवारा, गणेो न बीजा दासेा. म. २ रजोगुणी तमोगुणी राज्याथी, सौनी पडती तपासा; विश्व मुसाफरखानुं क्षणिक छे, जूठा मोह तमासो. म. ३ अरे मुसाफ बता पन्थमां परस्पर न विनाशेो; परस्पर उपकारने करशेो, एक बीजाने च्हाश. म. ४ धर्मना भेदे द्वेष न धरशो, दुर्गुण व्यसनो विनाशेो; न्याय नीति प्रमाणिक जीवन, सद्गुणमांहि उजाश. म.५ क्रोध मान माया लाभ तजा झट, सेवामां उजमाशा; चोरी झारी द्वेषने त्यागी, ज्ञान भक्तिए विलासो. म. ६ दारुपान न करशेो क्यारे, मांस कदापि न खाशा; पशु पंखीने हणो न हणावा, पापपंथे नहीं जाशा. म. ७ ब्रह्मचर्य घरी वोर्यने रक्षा, सत्यग्रहो ने प्रकाशा; परस्पर उपकारनी फर्जी, अदा करो हरखाशा. म. ८ विश्वनी आध्यात्मिक एकतामां तन धनथी अर्पाशा; मत सहनता प्रभुमय जीवन, धारो करो गुणवासो. म. ९ मन इन्द्रिय विषयोपर काबू, मूकी शांति पाशा; ज्ञानने भक्ति कर्मोपासना, धारी विश्व विकास. म. १० दया दान दम विनय क्षमा तप, माध्यस्थ गुणथी विलासेा; बुद्धिसागर सत्य स्वराज्य, सर्व गुणाथी प्रकाश. म. ११
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