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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनना दोष टळो सहु मेला, दयादृष्टिथी नित्य चलाशोरे. सर्व ४ वेगे माया फंदो स्लशो, प्यारा प्रभु हृदय परखाशोरे; सर्व.. बुद्धिसागर आनंद मंगल, जय जय जगत वर्ताशोरे. सर्व. ५ समभाव. श्री राग. समभावे रहेQ सुखकारीरे, उपाधि भिन्न विचारीरे; समभावे. नहि कोइ व्हालुं नहि कोइ वैरी,अहो ममता दुःखनीक्शरीरे.सम.१ कोइक निन्दो कोइक वन्दो, अरति रति बहु दुःखकारीरे. सम. जे जे थावे ते सहु थावो, दृष्टि तटस्थ में निर्धारीरे. सम. २ मन कल्प्यु इष्टानिष्टत्व, ते सहु दूर निवारीरे। सम. अन्तरमा रमशुं मन प्रेमे, बाह्य परिणति दूर निवारीरे. सम. ३ राग द्वेष बेथी छे बंधन, मुक्ति छे ध्यानथी सारीरे. सम. परम प्रेम धारीशुं निजमा, शाश्वत सुख घट धारीरे सम. ४ मुक्तिनां सुख मुक्तिमा छ, समता सुख अहीं महा भारीरे सम. बुद्धिसागर समता प्रगटी, आनंद मंगलकारीरे. सम. ५ reONT सत्य शोधी लीधुं, श्री राग. में शोध्युं जगत्मांहि सारुरे, मने लाग्युं अन्तरमा प्यारुरे. में. पुद्गल शोध्यु सुख न भास्यु, में चेतनमा मुख धार्युरे. में. १ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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