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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपाध्यायजी स्तवनम् . ए गुण वीरतणो न विसारूं-ए राग. वंदु सद्गुरुना पदपंकज, यशोविजय जयकारीरे; उपाध्यायजी ज्ञानी ध्यानी, भावदया उपकारीरे, वंदु. १ अष्टोत्तर शत ग्रंथ अधिक शुभ, संस्कृत रचना सारीरे, जिन शासननी उन्नति कीधी, संविग्न पक्ष वधारीरे. वंदु. २ दर्शन ज्ञानचरणमां लीना, पंच महाव्रत धारीरे। द्रव्य क्षेत्र काल भाव प्रमाणे, परम प्रभावनाकारीरे. वंदु. ३ निश्चयने व्यवहारमा पूरा, साधन साध्य विचारी। ज्ञान क्रियाना साधक शूरा, प्रगटया महा अवतारीरे. बंदु ४ तुज वाणी अमृत गुण खाणी, अनेकान्त नयधारीरेः तुज ग्रंथोना अभ्यासक जन, अनुभव ले निर्धारीरे. वंदु. ५ जिनशासनना धोरी कलियुग, गीतारथ अनगारीरेदीर्घदृष्टि जिनशासन रक्षक, ध्याने घट उजियारीरे. वंदु ६ प्राणजीवन मुज हृदयना स्वामी, जंगम तीर्थ सुधारीरे तुज विरहे मुज चेन पडे नहि, दर्शन द्यो सुखकारीरे. बंदु. ७ अनेकान्तनयज्ञान बतावी, सेवक श्रद्धा वधारीरे; ए उपकार तमारो न भूलं, भवोभव तुं हितकारीरे. वंदु. ८ अष्ट सिद्धि रूद्धि शुभदायक, सेवाग्रही एक तारीरे; बुद्धिसागर सहाय करो गुरु, वन्दु वार हजारीरे. वंदु ९ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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